Wednesday 13 January 2016

परहित Hindi Poem

परहित


रात गगन में तारे  अगणित,
जड़वत  हो  अनजान  खड़े है,
छोटे  छोटे   दिखे   भले    पर
मन ही मन अभिमान बड़े है।

ऐसे  में   इन  सबका  अब  तो
सबक  सीखना     निश्चित  है
परहित   पाठ    पढा़ने        को
 सूरज   निकलना   निश्चित है।


- राम लखारा 'विपुल'

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